रामजियावन दास बावला राम जियावन दास बावला भोजपुरी भाषा के अद्भुत गीतकार एवं समर्थ कवि हैं। भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र में अत्यन्त समादृत ...
रामजियावन दास बावला |
राम जियावन दास बावला भोजपुरी भाषा के अद्भुत गीतकार एवं समर्थ कवि हैं। भोजपुरी भाषा-भाषी क्षेत्र में अत्यन्त समादृत बावला के गीत गाँव-गाँव में जुबान पर चढ़े हैं। वाचिक परम्परा के विशिष्ट सर्जक बावला चन्दौली जनपद की गौरवपूर्ण पहचान हैं। चन्दौली का साहित्यिक विवरण बिना बावला के पूर्ण नहीं हो सकता है। कवि बावला का केवल एक गीत संग्रह प्रकाशित हो पाया है और वह है सेवक प्रकाशन, ईश्वरगंगी, वाराणसी से प्रकाशित गीतलोक। रामजियावन दास बावला को भोजपुरी की उनकी रचनाओं के लिए अनेकों सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, यद्यपि बावला इन अलंकारों से निस्पृह विशिष्ट संवेदना के विरले कवि थे। देश विदेश में बावला जी ने भोजपुरी की पताका लहरायी और ग्रामीण संवेदना के अद्भुत चितेरे कवि के रूप में प्रतिष्ठित हुए।
बावला जी की एकमात्र प्रकाशित कृति गीतलोक की भूमिका में डॉ० विद्यानिवास मिश्र लिखते हैं-
"श्री रामजियावन दास बावला शुद्ध वाचिक परम्परा के जीवन में कविता और कविता में जीवन समोने वाले अपने ढंग के सचमुच ही बावले कवि हैं। उन्होंने बावला उपनाम के भीतर अपनी सहज जीवन निष्ठा छिपाकर रखी है। वे काशी जनपद के अधपहाड़ी और जंगली इलाके के भीखमपुर गाँव में रहते हैं, किसानी करते हैं और गाय भैंस चराते हैं। वे सब करते हुए अपनी धुन में गाते रहते हैं। उनके स्वर में ऐसा लालित्य है और कहने के ढंग में ऐसी बेकसी है कि उनको सुनने के लिए भीड़ जुट जाया करती है, पर वे भीड़ के कवि नहीं हैं, वे कवि हैं वन निर्भर के, विजन के।"
१ जून सन १९२२ को तत्कालीन बनारस स्टेट के चकिया (अब चन्दौली ज़िले की एक
तहसील ) के भीखमपुर गाँव के अतिसामान्य लौहकार परिवार में जन्मे ’बावला’ छः
भाई-बहनों में सबसे बड़े थे! पिता श्री रामदेव जातीय व्यवसाय में निमग्न
पूरे परिवार को ’रूखी सूखी खाय के ठंडा पानी पिउ....’ के सिद्धान्त
पर जीना सिखाते। बावला ने संतोष का सूत्र पकड़ लिया, जो बावला के जीवन के
प्रत्येक आयाम में निखरा पड़ा है। पिता-बड़े पिता रोज शाम को कंठ-कंठ में
बसी रामायण पढ़ते/सुनते तुलसी बाबा वाली...बावला भी मगन होकर सुनते! राम बस
गए मन में, राम की भक्ति ठहर गयी जीवन में। परिवार में भी पढ़ने लिखने की
जरूरत नहीं दिखायी गयी..बावला का मन भी न लगा...अक्षर-ज्ञान की कक्षा ही ली। कहने को तीन तक पढ़े। चौथी में फेल हुए, फिर भाग चले ..सो पढ़ना-लिखना
नहीं आया! ’पढ़ो-लिखो नहीं तो भैंस चराओ’ का सर्वमान्य सिद्धान्त
सधा ’बावला’ पर..’बावला’ ने कहावत जीने की सोची...भैंस चराने लगे। यह
परिवार के काम में उनके हिस्से का काम हो गया। उस समय से जीवनांत तक ’बावला’
राम भजते, लोक-व्यवहार निभाते, घर-दुआर की पहरेदारी करते..अपने हिस्से का
काम मुस्तैदी से करते रहे! रामजियावन दास बावला का निधन १ मई सन २०१२ को हुआ।
चन्दौली जनपद में प्रथम चन्दौली महोत्सव-२००३ के अवसर पर बावला जी को
विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया एवं इस वर्ष आयोजित तृतीय चन्दौली
महोत्सव -२०१५ में श्री रामजियावन दास बावला मरणोपरान्त ’चन्दौली रत्न’ के
सम्मान से विभूषित किये गए। बावला जी को मिला यह सम्मान स्वयं सम्मान की
गौरव-वृद्धि करता है। चन्दौली महोत्सव के अवसर पर जिलाधिकारी महोदय ने
बावला जी की अद्यतन अप्रकाशित महनीय कृति भोजपुरी रामायण को तत्काल प्रकाशित कराने की घोषणा भी की।
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