भूगर्भ, मृदा, टोपोलॉजी, जलवायु एवं प्राकृतिक वनस्पतियों के आधार पर जनपद निम्नलिखित क्षेत्रों में उप-वर्गीकृत किया जा सकता है- चकिया का प...
भूगर्भ, मृदा, टोपोलॉजी, जलवायु एवं प्राकृतिक वनस्पतियों के आधार पर जनपद निम्नलिखित क्षेत्रों में उप-वर्गीकृत किया जा सकता है-
- चकिया का पठारी क्षेत्र
- चन्दौली का समतल क्षेत्र
- गंगा खदान
चकिया का पठारी क्षेत्र:
राजदरी की पहाड़ियाँ |
यह क्षेत्र चकिया तहसील का दक्षिणी हिस्सा है। 100 मीटर की कन्टूर रेखा इस क्षेत्र को चन्दौली के मैदानी भाग से अलग करती है। यह भाग पहाड़ी है। तल असमतल और विखंडित है। मध्यवर्ती भाग में एक बहुत ही ढालू जमीन है जो आगे चलकर पर्वत स्कंध में बदलते हुए उत्तर की और चला जाता है। विंध्य पर्वत शृंखला इसके पास तक फैली हुई है। अधिकतम ऊँचाई 300 मी० (1000’) कन्टूर से स्पष्ट की जाती है और इसका फैलाव दक्षिण पूर्व दिशा की और है। सतही ऊँचाई में एकरूपता मध्यवर्ती भाग में नहीं दिखायी देती है जबकि दक्षिणी भाग चौड़ी समतल भूमि है। इसमें प्रायः झुकाव-सा दिखाई देता है। उत्तर की और ऊँचाई क्रमशः घटती जाती है। नदियाँ दक्षिण से निकलती हैं और उत्तर की तरफ काफी तीखा घुमाव लिए बहती हैं। बड़े-बड़े झरने हैं। चन्द्रप्रभा पर देवदरी जल-प्रपात एक अत्यन्त सुन्दर पिकनिक स्थल है। इस क्षेत्र के उत्तरी भाग में मिट्टी का कटाव नदियों के प्रवाह के साथ होते रहना सामान्य भौतिक घटना है। कर्मनाशा नदी पर भैसोड़ा बाँध का निर्माण सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए किया गया है। चूँकि यह पहाड़ी परिक्षेत्र है इसलिए इसका काफी बड़ा हिस्सा जंगलों से आच्छादित है। खेती के लिए बची हुई जमीन बहुत सीमित है। चकिया से सटा इसका उत्तरी भाग अपेक्षाकृत समतल है और नहरों द्वारा सिंचित है। यह छोटा समतल खंड खेती के लिए अनुकूल है। यहाँ उगायी जाने वाली मुख्य फ़सल धान है। भौगोलिक दृष्टि से यह क्षेत्र ’अपर प्रोटोरोजोइक’ (upper protorojoic) काल का है।
चन्दौली का समतल क्षेत्र:
इस क्षेत्र में चन्दौली, सकलडीहा और चकिया तहसील सम्मिलित हैं। चन्दौली तहसील का क्षेत्र तुलनात्मक दृष्टि से नीचा है जिससे बरसात में इसमें पानी इकट्ठा हो जाता है। जमीन समतल है और भौतिक रूप में इसमें उतार चढ़ाव बहुत कम है। इस क्षेत्र का प्रमुख और बड़ा हिस्सा जलधारा से मुक्त है। चन्द्रप्रभा और कर्मनाशा नदियाँ इसके दक्षिण होकर उत्तर पूर्व दिशा की ओर बहती हैं। गड़ई चन्द्रप्रभा से मिलने वाली एक छोटी नदी है। इन नदियों के प्रवाह के कारण मिट्टी का कटान होना यहाँ का भौतिक स्वरूप है। इस क्षेत्र की स्वाभाविक ढलान उत्तर की तरफ है, लेकिन स्थानीय सतहों के अनुकूल इसमें बदलाव भी होता रहता है। मध्यवर्ती हिस्सा अपेक्षाकृत ऊँचा है। जियोलॉजिकल दृष्टि से क्षेत्र एलूवियम (Alluvium) और डन ग्रैवेल (dun gravel) से बना है। बहुत अधिक संख्या में नहरें हैं जो इस क्षेत्र की कृषि-समृद्धि को दर्शाती हैं। भौतिक स्थिति यातायात के विकास के लिए सर्वथा अनुकूल है, परन्तु इस कार्य में गंगा एक रुकावट है। अन्य क्षेत्रों से इसके संपर्क मार्ग बहुत विकसित हैं।
गंगा खदान:
गंगा का तट |
यह गंगा के किनारे एक संकरी शृंखला है जो जिले के एक छोर से दूसरे छोर तक फैली हुई है। सतह नीची है और बाढ़ आने पर बाढ़ का पानी क्षेत्र की सीमा को भंग कर देता है। मुख्य नदी गंगा है जो उत्तरी और पश्चिमी भाग में बहती है। प्राकृतिक उपादान के रूप में नदी के सूखे तह और बालू वाली भूमि गंगा नदी के भौतिक रुप में उपलब्ध है। भूगर्भशास्त्रीय दृष्टि से यह क्षेत्र एलूवियम और डन ग्रैवेल या वर्तमान कालिक निर्माण के रूप का है। खेती केवल रवि की फसलों तक सीमित है। वास्तविक रूप में एलूवियम की तह कृषि की उत्पादक क्षमता में वृद्धि करती है।
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